कक्षा – 9 ‘अ’ क्षितिज भाग 1

            पाठ 13

     ग्राम श्री- सुमित्रानंदन पंत

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ग्राम श्री कविता का सार- Gram Shree Kavita Ka Saransh :-

इस कविता में कवि ने गांव के प्राकृत सौंदर्य का बड़ा ही मनोहर वर्णन किया है। फिर चाहे वह हरे भरे खेत हो या बगीचे या फिर गंगा का तट सभी कवि की इस रचना में जीवित हो उठे हैं। अगर आपने अपने जीवन काल में कभी भी गावं की शुष्मा और समृद्धि का दृश्य नहीं देखा है तो भी आप इस कविता को पढ़ कर ये कल्पना कर सकते हो की वह कैसा प्रतीत होगा। फिर चाहे। खेतों में उगी फसल आपको ऐसे लगेगी मानो दूर दूर तक हरे रंग की चादर बिछी हुई हो। और उस पर ओश की बुँदे गिरने के बाद जब सूरज की किरणे पड़ती हैं तो वह चांदी की तरह चमकती है। नए उगते हुए फसल गेंहू, जौ, सरसो, मटर इत्यादि को देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो प्रकृति ने श्रृंगार किया हो। और दूसरी ओर आम के फूल, जामुन के फूल की सुगंध पुरे गांव को महका रही है। गंगा के किनारे का दृश्य भी इतना ही मोहक फिर चाहे वह पानी में रहने वाले जिव हो या रेत में सभी अपने कार्य में लगे हुए हैं। जैसे की बगुला किनारे में मछलियाँ पकड़ते हुए खुद को संवार रहा है। इस तरह कवि अपने इस कविता के माध्यम से हमें गांव के प्राकृत सौंदर्य का एक सजग उदहारण प्रस्तुत करते हैं।

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ग्राम श्री कविता का भावार्थ- Gram Shree Line by Line Explanation:-

 
फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटीं जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली!
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भू तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक!

भावार्थ :-  प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने हरी भरी धरती के प्राकृतक सौंदर्य का बड़ा ही मनोरम चित्रण किया है। उन्होंने लिखा है की खेतों में सारी फैसले उग चुकी है इसलिए चारो तरफ हरियाली फैली हुई है और जब सुबह सुबह इसमें ओश की बुँदे गिरती हैं और उसके बाद सूर्य उदय के पश्चात जब सूर्य की किरणे इन बूंदो में पढ़कर चारो तरफ फैलती है तो सारा वातावरण चमक उठता है। और इसी वजह से ऐसा प्रतीत होता है की खेत की हरियाली के ऊपर चांदी सी जाली की तरह नजर आ रही है। और जब नए उगे हुए हरे पत्तों पर सूर्य की किरणे पड़ रही है तो वो ऐसा लग रहा है मानो सूर्य की किरणे उनके आर पार चली जा रही हैं और उनके अंदर स्थित हरे रंग का खून साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा है। और जब हम दूर से इस वातावरण को निहारने लगते हैं तो हमें ऐसा प्रतीत होता है की नीले रंग का आकाश झुक कर खेतो के हरियाली के ऊपर अपना आँचल बिछा रहा हो।

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रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली!
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली!

भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने फसलों से लदी हुई धरती की सुंदरता का वर्णन किया है। उनके अनुसार खेतो में जौ और गेहूँ फसलों के उगने से धरती बहुत ही रोमांचित लग रही है। अरहर और सनई की फसलें इस तरह लग रही हैं की मानो वो सोने की करघनी हो जो किसी युवती रूपी धरती की कमर में बंधी हुई है और हावा के चलने से हिल-हिल कर मधुर ध्वनि उत्पन्न कर रही है। और सरसो के फूलों की खिल जाने से पुरे वातावरण में एक खुसबू से बह रही है जो धरती की प्रसन्नता को बयां कर रही है। और इस हरि भरी धरती की सुंदरता को बढ़ाने के लिए अब तीसी की नीली फूल भी अपना सर उठाकर झांक रही है।

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रंग रंग के फूलों में रिलमिल
हंस रही सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटकीं
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी!
फिरती है रंग रंग की तितली
रंग रंग के फूलों पर सुंदर,
फूले फिरते ही फूल स्वयं
उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर!

भावार्थ :-  प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने खेत में रंग बिरंगे फूलों और तितलियों के सुंदरता का वर्णन किया है। उन्होंने लिखा है की विभिन्न रंगो के फूलों बिच मटर की फसलें खड़ी होकर हंस रही है जैसे कोई सखी जब सज धज कर तैयार होती है तो सारी सखियाँ देखकर उसे मुस्कुराने लगती है। और इन्ही की बिच छिपी हुई कहीं कहीं फसलों की लड़ियाँ खड़ी हुई हैं जिसमें बीज की लड़ियाँ सुरक्षित हैं। और इन सब के बिच कई तरह के रंग बिरंगे तितलियां एक फूल से दूसरे फूल तक उड़ उड़ कर जा रहे हैं मानो ऐसा लग रहा हो जैसे एक फूल दूसरे फूल तक उड़ उड़ का जा रहा हो। तो इस तरह प्रस्तुत पंक्तियों में कवि की कल्पना सजग हो उठी है जिसमे उन्होंने रंगो से भरे प्राकृतक वातावरण का बड़ा ही मोनहरी चित्रण किया है।

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अब रजत स्वर्ण मंजरियों से

लद गई आम्र तरु की डाली,

झर रहे ढ़ाक, पीपल के दल,

हो उठी कोकिला मतवाली!

महके कटहल, मुकुलित जामुन,

जंगल में झरबेरी झूली,

फूले आड़ू, नीम्बू, दाड़िम

आलू, गोभी, बैगन, मूली!

भावार्थ :- प्रस्तुत पंकितयों में कवि ने पेड़ो में लदे हुए फसलों का बड़ा ही सुन्दर वर्णन किया है। कवि कहता है की आम के पेड़ो की डालियाँ सुनहरे और चांदी रंग की आम की बौर से लद चुकी है। और पतझड़ के कारण ढाक और पीपल के पेड़ की पत्तियाँ झड़ रही हैं। और इन सब के कोयल मतवाली होकर मधुर संगीत सुना रही है। पुरे वातावरण में कटहल की महक को महसूस कीया जा सकता है और आधे पक्के-आधे कच्चे जामुन तो देखते ही बनते है। और झरबेरी बेरों से लद चुकी है। और खेतों में कई तरह की फल एवं सब्जियां ऊग चुकी हैं जैसे आड़ू, नींबू, अनार, आलू, गोभी, बैगन, मूली इत्यादि।

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पीले मीठे अमरूदों में

अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ीं,

पक गये सुनहले मधुर बेर,

अँवली से तरु की डाल जड़ी!

लहलह पालक, महमह धनिया,

लौकी औ’ सेम फलीं, फैलीं

मखमली टमाटर हुए लाल,

मिरचों की बड़ी हरी थैली!

भावार्थ :-  प्रस्तुत पंक्तियों में फल एवं सब्जियों के प्राकृतक सौंदर्य का बहुत ही सुन्दर चित्रण देखने को मिलता है। अमरुद की पेड़ो में फल पक चुके हैं और उनपर लाल लाल निशाने भी दिखाई दे रही हैं। जो इस बात का संकेत है की अमरुद पक चुके हैं। और बैर भी पक कर सुनहले रंग की हो गई हैं। और आवंले के फल से पूरी डाल ऐसी लदी हुई है जैसे वह जड़ी की तरह लगाई गई हो। पालक पुरे खेत में लहलहा रहे हैं और धनिया की सुगंध को पुरे वातावरण में फैली हुई है। लौकी और सेम की फले ऊग चुकी हैं और और तरह फ़ैल गई है। टमाटर पक कर लाल हो चुके हैं मानो जैसे मखमल बिछा हुआ हो। मिरचों की गुच्छें इस तरह फैली हुई है मानो वो किसी थैली की तरह लग रही हो।

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बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूजों की खेती;
अँगुली की कंघी से बगुले
कलँगी सँवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती सोई!

भावार्थ :-  प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने गंगा तट के सौंदर्य का वर्णन किया है। उनके अनुसार गंगा के किनारे रेत टेढ़ी मेडी कुछ इस तरह फैली हुई है जिस तरह कोई सांप जब बालू पर चलता है तो निसान छोड़ जाता है थी उसी भाँती। और जब सूर्य की किरणे उस रेत पर पड़ रही है तो वो रंगबिरंगी नजर आ रही है। गंगा के किनारे तट पर बिछे हुए घास पात बिछे हुए हैं जिनके बिच में तरबूजों की खेती बहुत ही सुन्दर दिखाई पड़ रही है। गंगा के तट पर अपना शिकार करते बगुले अपने पंजो से कलँगी को ऐसे सवार रहे हैं मानो वे कंघी कर रहे हो। और चक्रवाक पक्षी मानो किनारे में तैर रही है और मगरैठी पक्षी सोइ हुई है।

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हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोये,
भीगी अँधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में-से खोये-
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम-
जिस पर नीलम नभ आच्छादन-
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन!

भावार्थ :- अपने अंतिम पंक्तियों में कवि ने गांव के हरियाली, शांति एवं प्राकृतिक सौंदर्य का बड़ा ही सरलता से वर्णन किया है। उनके अनुसार सर्दी की धुप में जब सूर्य की किरणे खेतो की हरियाली पर पड़ती है तो वो इस तरह चमक उठती है मानो वो खुसी से झूम रही हो। और कवि को ये दोनों आलस्य से भरे सोये हुए प्रतीत होते हैं। सर्दी की रातें ओश के कारण भीगी हुई जान पड़ रही है जिसमे तारे मानो किसी सपने में खोये हुए लग रहे हैं। और इस वातावरण में पूरा गांव किसी रत्न की तरह लग रहा है जिसमे आकाश ने नीले रंग की चादर उड़ा रखी हो। और इस प्रकार सरद ऋतू के अंतिम कुछ दिनों में गांव के वातावरण में अनुपम शांति की अनुभूति हो रही है जिससे गांव के सभी लोग बहुत प्रभवित है।

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