कक्षा – 9 ‘अ’ क्षितिज भाग 1 पाठ 15

      मेघ आये- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

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मेघ आए कविता का सार :

संकलित कविता में कवि ने ग्रामीण संस्कृति एवं प्राकृतक सुंदरता का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया है। कवि ने यहाँ मेघो के आने की तुलना सजकर आए अतिथि से की है। जिस तरह भीषण गर्मी के बाद जब वर्षा के मेघ आते हैं तो जो उत्साह और उल्लाश देखने को मिलता है कवि ने उसकी तुलना दामाद के आने पर गाँव के लोगो को जो खुसी होती है, उसके साथ की है। तो इस तरह कवि ने आकाश में बादल और गाँव में मेहमान (दामाद) के आने का बड़ा रोचक वर्णन किया है।

जब मेघ आते हैं को हवा चलने के कारण धूल उड़ने लगती है नदी के जल में उथल पुथल होने लगता है। बिजली गिरती है। सारे वृक्ष झुक जाते है। इन सब घटनाओं की तुलना कवि ने दामाद के आने पर घर तथा गांव में होने वाली तैयारियों के साथ की है। जैसे जीजा की सालियाँ उनके पीछे पीछे चलती है और औरते उन्हें दरवाजे के पीछे से देखती हैं और बड़े बुजुर्ग उनका आदर सत्कार करते हैं।

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मेघ आए कविता का  भावार्थ- Megh Aye Line by Line Explanation :

 

मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,

दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली,

पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।

मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के।

भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने वर्षा ऋतू के आने पर गांव में जो उत्साह दिखाई पड़ता है उसका चित्रण किया है। कवि ने यहाँ बदल का मानवीकरण कर उसे एक दामाद (सहर से आये अथिति) के रूप में दिखाया है। जिस प्रकार हमारे समाज में जब कोई दामाद अपने ससुराल जाता है तो वह बड़ा ही सज धज के एवं बन ठन कर जाता है ठीक उसी प्रकार मेघ भी बड़े बन ठन कर और सुन्दर वेश भूसा धारण कर के आये हैं। और उनके आगे आगे हवा नाचती हुई पुरे गांव को यह सुचना देने लगी की सहरी मेहमान(दामाद) आया है। जैसे किसी मेहमान के आने पर गांव के बच्चे एवं जीजा के आने पर उनकी सालियाँ उनके पीछे पीछे चलती हैं और घर घर घूम कर ये संदेश पुरे गांव में फैला देते हैं ठीक उसी तरह। और यह सुचना पाकर की सहरी मेहमान आ रहा हैं सभी लोग अपने खिड़की दरवाजे खोलकर उसे देखने एवं उसे निहारने के लिए घरो से बड़ी बेताबी से झांक रहे हैं।

इसका अर्थ यह है की हर वर्ष हम वर्षा ऋतू का बहुत ही बेसब्री से प्रतीक्षा करते हैं और जब यह आने वाली होती है सारा आकाश बदलो से ढक जाता है और हवाएं चलने लगती हैं तब सभी लोग घर से निकल कर वर्षा ऋतु का आनंद लेने लगते हैं।

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पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,

आंधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये,

बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूंघट सरके।

मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने जब वर्षा ऋतू आती है तब प्रकृति में आये बदलाव का वर्णन किया है और उसका मानवीय करण किया है। जब मेघ आकाश में आते हैं तो आंधी चलने लगती है जिसके वजह से धूल ऐसे उड़ने लगती है मनो गांव की औरते घाघरा उठाए दौड़ रही हों। और हवा के चलने के कारण पेड़ ऐसे झुके हुए प्रतीत होते हैं मानो वे अपने सर उठाये मेहमान को देखने की कोशिश कर रही हैं। वहीँ दूसरी और नदी ठिठकी हुई अपने घूँघट सरकाए तिरछी नजरो से मेहमान को देख रही है।

इसका अर्थ यह है की जब वर्षा होने वाली होती है तो पहले हवा चलने लगती है जिसके कारण रास्ते में पड़े धूल उड़ने लगते हैं एवं हवा के वेग से वृक्ष झुक जाते हैं एवं इस अवस्था में नदी का पानी मानो ठहर सा जाता है जिसकी सुंदरता देखते ही बनती है।

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बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,

‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’ –

बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,

हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।

मेघ आए  बड़े बन-ठन के सँ वर के।

भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने वर्षा ऋतू के आगमन एवं घर में दामाद के आगमन का बढ़ा ही मनोरम चित्रण किया है। जब कोई दामाद बहुत दिनों के बाद घर आते हैं तो घर के बड़े बुजुर्ग उन्हें झुककर प्रणाम करते हैं और उसकी संगिनी हटपूर्वक गुस्सा होकर दरवाजे के पीछे छुप जाती हैं की उन्होंने इतने दिनों से मेरे बारे कोई सुध (खोज खबर) क्यों नहीं ली, क्या इतने दिनों के बाद उन्हें मेरी याद आई। और जब हमारे घर में कोई अथिति आता है तो हम उसके पांव धुलाते हैं इसीलिए कवि ने यहाँ पानी “परात भर के” उपयोग किया है।

इसका अर्थ यह है की जब मेघ बन ठन कर आते हैं तो बूढ़े बुजुर्ग जिस तरह अपने दामाद का स्वागत करते हैं ठीक उसी प्रकार पीपल का वृक्ष भी झुककर वर्षा ऋतू का स्वगत करता है। और जल की बुँदे के लिए व्याकुल लताएं गुस्से से मेघ से छुपने के लिए दरवाजे यानी पेड़ का सहारा लेती हैं की वे कब से प्यासी मेघ का इंतज़ार कर रहीं हैं और उन्हें अब आने का समय मिला है। और तालाब मेघ के आने के खुसी में आदरपूर्वक उमड़ आया है। अर्थात वह परात भर कर अथिति (मेघ) के पांव धुलवाने के लिए परात भर कर पानी लाया है।

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क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी,

‘क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की’,

बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके।

मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

भावार्थ :- अभी तक संगनी को यह भ्रम लग रहा था की उसका प्रियवर आ रहा है लेकिन जब वो आकर घर के ऊपर बालकनी में चला जाता है तो मनो उसके अंदर बिजली से दौड़ उठती है। और उसके अंदर का यह भ्रम की वह नहीं आयंगे ये टूट जाता है। और वह मन ही मन क्षमा याचना करने लगती है। और दोनों प्रेमी मिलकर आंसुओं की धरा बरसाने लगते हैं।

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहता है की पूरा क्षितिज बादलों से ढक चुका है और बिजली चमकने लगी हैं अब जो हमारे अंदर आशंका थी की मेघ नहीं आएंगे और वर्षा नहीं होगी वो भ्रम टूट चुकी है इसीलिए हमारे आँखों से आंसू वर्षा ऋतू के जल के साथ बह रही है। और इस तरह वर्षा बरसाते हुए बादल आकाश में बहुत सुन्दर लग रहे हैं।

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